अपनों को अपनों से मिलाये ,
अपनों में वह बात कहा ?
गलती करके झुक जाए
अपनों में यह अहसास कहाँ ?
रखते है अरमान बहुत
लेकिन करने का आकार कहाँ ?
अपने पर जो अटल रहे
ऐसा अब इन्सान कहाँ ?
कर्तव्यों को जो कर दिखलाये
अपनों में अब वह महान कहा ?
देश हित पर जो मिट जाए
अपनों में वह बात कहाँ ?
तन मन धन से देश पर जो अर्पित हो जावे
अपनों में वह शान कहाँ ?
kavita achchhi hai. lekin aaj bhi dharti par aise veer saput hai jo apni maatra bhumi ke liye sab kuch nyochhaver karne ke liye tatpar hai.
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